Yati – Ek Veechar

यति-एक विचार

यति - शास्त्रों में  लय  अथवा गति के विभिन्न प्रयोगों को यति कहा गया है l तबला वादन के आरंभिक काल में लय की एक समान गति वाली बंदिशों का प्रचलन था, परंतु समय के साथ-साथ विभिन्न बंदिशों की भी संकल्पना की गई अथवा रचना की गई | जिनमें मूल गति अथवा लय के अतिरिक्त अन्य गति अथवा लय का भी प्रयोग देखने को मिला l इसी प्रयोग के वर्गीकरण के फल स्वरुप हमें यति आयाम प्राप्त हुए l जिनमें एक समान गति वाली रचनाएं, द्रुत अथवा माध्यम से मध्य अथवा विलंबित की ओर बढ़ने वाली रचनाएं, विलंबित तथा मध्य से मध्य अथवा द्रुत लय की तरफ बढ़ने वाली रचनाएं, ऐसी रचनाएं जिनमें विभिन्न लयों का एक साथ समावेश किया गया हो प्राप्त हुई l आइए अब इन पर सविस्तार तथा उदाहरण-सहित चर्चा करें:-

  1. समायति – जब किसी बंदिश की आरम्भ से अंत तक लय एक समान हो , तो उसे समायति कहते हैं |

लय विधान:

  • विलंबित > विलंबित > विलंबित
  • मध्य > मध्य > मध्य
  • द्रुत > द्रुत > द्रुत

उदाहरण: समायति टुकड़ा मध्य लय |

Sama yati
  1. स्त्रोतोगता यति– ऐसी बंदिश जो प्रारंभ में धीमी हो तथा नदी की भांति आगे बढ़ते हुए तेज़ होती जाये स्त्रोतोगता यति कहलाती है |

लय विधान =

  • विलंबित > मध्य > द्रुत |

उदाहरण: चार ताल |

Mridanga Yati
  1. गौपुच्छा यति– ऐसी बंदिश जो अपने आरंभ काल में तीव्र गति से, मध्य काल में मध्य गति से तथा अंत में धीमी गति से सम को प्राप्त करे उसे गौपुच्छा यति कहते हैं |

लय विधान:

  • द्रुत > मध्य > विलंबित |

उदाहरण: टुकड़ा |

Gaupuchha yati

(गौपुच्छा आकार)

 घेनातूना

धातूना

तूंना

ना

4. मृदंगा यति – इस यति की रचना मृदंग के आकर से प्रेरित हो कर की गयी

है अत: इसके लय-भेद निम्न प्रकार से हो सकते हैं |

लय विधान:

  • द्रुत > मध्य > द्रुत |
  • द्रुत > विलंबित > द्रुत |
  • मध्य > विलंबित > मध्य |
  • मध्य > विलंबित > मध्य |

उदाहरण: तीन ताल |

Mridanga Yati 2
  1. पिपिलिका यति– इसके अंतर्गत ऐसी बंदिशें आती हैं जिनकी लय आरंभ तथा अंत में धीमी तथा मध्य में तीव्र हो जाती हैं | इस यति के लय-भेद निम्न प्रकार से हो सकते हैं |

लय विधान:

  • मध्य > द्रुत > मध्य |
  • विलंबित > द्रुत > विलंबित |
  • विलंबित > मध्य > विलंबित |

उदाहरण: गत |

Piplika Yati